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लेखनी कहानी -01-Jun-2023 कातिल कौन

भाग 31 
हीरेन की तथ्यपरक और तर्कसंगत बहस अभी चल ही रही थी कि लंच का समय हो गया । भारत में लंच बहुत जरूरी है । विशेषकर सरकारी कार्यालयों में । लंच के बहाने खाने को भी मिल जाता है और "चुगलाने" को भी । खाना और चुगलाना दोनों ही बहुत जरूरी हैं । जब तक "चुगली" नहीं करेंगे तो खाना पचेगा कैसे ? कुछ सयाने तो खाना और चुगलाना दोनों साथ साथ कर लेते हैं । खाते भी जाओ और चुगली करते करते पचाते भी जाओ । इससे समय की भी बचत होती है और खाने का स्वाद भी बढ़ जाता है । आम के आम और गुठलियों के दाम , दोनों एक साथ । गजब का टेलेण्ट है भारत के लोगों में । 

पर शास्त्रों में खाने पर नियंत्रण करने के लिए कहा गया है ।बुजुर्ग लोग कहते हैं कि उतना ही खाओ जिससे कि शरीर काम करने योग्य बना रहे । इसी संबंध में एक प्रसिद्ध कहावत भी है "कम खाओ और गम खाओ" । इसका मतलब है कि कम ही खाना चाहिए । कम खाने वाला व्यक्ति आज तक नहीं मरा है । हां ज्यादा "चरने" वाले इंसान को पचासों बीमारियां हो जाती हैं और वह उन बीमारियों को ठीक करने के लिए अनाप शनाप दवाइयां खाता है । इन बेहिसाब दवाइयों के साइड इफेक्ट्स के कारण और दूसरी बीमारियां हो जाती हैं । फिर उन एक्स्ट्रा बीमारियों के लिए एक्सट्रा दवाइयां खाओ । इस तरह दवाइयों की संख्या में और वृद्धि हो जाती है । इस प्रकार दिनों दिन दवाइयां बढती रहती हैं और खाने की मात्रा कम होती रहती है । एक दिन ऐसा आता है कि खाने के नाम पर बस ये दवाइयां ही उसे खाने को मिलती हैं । और दवाइयां खाते खाते ही आदमी एक दिन "टें" बोल जाता है । 

आहार विज्ञान हमको यह सिखाता है कि एक बार में बहुत अधिक मत खाओ । दिन भर थोड़ा थोड़ा खाते जाओ । सुबह अच्छा नाश्ता । दोपहर में हल्का लंच । शाम को चाय के साथ कुछ बिस्किट्स और रात में मामूली सा डिनर । जिसने इस विज्ञान को अपनाया वह सुखी रहा । लेकिन हमारे यहां तो लोग पैदा ही "खाने" के लिए हुए हैं । और खायें भी क्यों ना ? भगवान ने मुंह किस लिये दिया है ? खाने के लिए ही ना ? और यह जीभ ? ये भी तो स्वाद के लिए ही बनाई गई है । तो जीभ की "डिमांड" 56 भोगों की होती है , उसकी डिमांड तो पूरी करनी पड़ेगी ना ? जैसे घर में घरवाली की डिमांड बिना हील हुज्जत के पूरी करनी पड़ती है वैसे ही जीभ की फरमाइश भी पूरी करनी जरूरी है । फिर चाहे पेट गालियां ही निकालते रहे । उसकी गालियां कुछ खास जगह से बाहर निकलती हैं । 

लोग इतना खाना खाते हैं कि उनका पेट एक "मटका" बन कर उनके सामने लटक जाता है । लटकने और लटकाने का भी अपना अलग ही आनंद है । लोग बसों में रेल में और न जाने कहां कहां लटक लटक कर पूरी जिंदगी निकाल देते हैं । कुछ लोग तो किसी की खिड़की पर ही लटके रहते हैं कि कब वह खिड़की खुले और कब "चाद" का दीदार हो । जब चाद का दीदार हो जाता है तभी वे अन्न जल ग्रहण करते हैं । बेचारी छमिया भाभी को इस चक्कर में घंटों खिड़की पर खड़े रहना पड़ता है । अरे भाई, चांद के दर्शन करने वाले बहुत सारे लोग हैं न ! 

जिनके पेट पर कोई मटका बंधा रहता है उनके लिए वह  मटका एक तरह का गोदाम जैसा ही होता है । जितना आदमी खाता है, उतने की उसे आवश्यकता नहीं होती है मगर वह ऐसे खाता जाता है जैसे कि वह पैदाइशी भुक्खड़ हो । अब छमिया भाभी के पतिदेव को ही ले लो । लोगों ने उनका नाम भुक्खड़ सिंह ऐसे ही थोड़ी रख दिया है ? लोग भी बहुत सोच समझकर नामकरण करते हैं । किसी को पेटूराम तो किसी को रोटी राम कह देते हैं । एक सज्जन को लड्डू इतने अधिक पसंद थे कि वे लड्डू देखते ही उन पर टूट पड़ते थे । लोग उन्हें "लड्डूलाल" कहकर बुलाने लगे । ये इमारती देवी, बर्फी देवी, रबड़ी देवी नाम ऐसे ही तो पड़े हैं । आजकल तो लोगों में नये नये नाम रखने की होड़ चल निकली है इसलिए कोई पिज्जामल तो कोई बर्गर चंद या फिर कोई पास्ता राम मिल ही जाता है । 

खाने के नाम पर लोग क्या क्या नहीं खाते हैं ? खाने में कुछ लोग तो केवल "घास फूस" यानि कि शुद्ध शाकाहारी खाना खाते हैं तो कुछ लोग गाय, बकरी, मुर्गी, पड्डा सब कुछ खा जाते हैं और उपदेश देते हैं कि पशुओं पर दया करो । ऐसे लोगों को आजकल "पशु प्रेमी" कहते हैं । विश्वास नहीं हो तो प्रियंका चोपड़ा और अनुष्का शर्मा से पूछ लो ? ये लोग खाने में भी सेक्युलर हैं । गाय भी खाते हैं तो सूअर भी खाते हैं । ऐसे पशु प्रेमी पशुओं में कोई भेदभाव नहीं करते हैं । "सर्वधर्म समभाव" की तरह ये लोग "सर्व पशु सम भाव" रखते हैं । 

सब लोग कुछ न कुछ तो खाते ही हैं । खाने के अलावा  कोई तो "रिश्वत" खाता है तो कोई "कसमें" खाता है । कोई किसी का "दिमाग" ही खा जाता है तो कोई "समय" खा जाता है । "गम" खाने वाले तो आपको "मधुशालाओं" में बहुत सारे मिल जाऐंगे । कोई किसी की नौकरी खा जाता है तो कोई अपना दीन ईमान ही खा जाता है । वैसे इस देश ने "चारा" खाते हुए भी इंसानों को देखा है । कुछ लोग "दलाली" खाते हैं तो कुछ लोग "कमीशन" । सेवा के नाम पर मेवा खाने वाले बहुत सारे लोग मिल जाऐंगे आपको । ऐसे लोगों को "खादी वाले" लोग कहते हैं । उनका कहना है कि हमने देश आजाद करवाया है इसलिए देश को खाने का भी अधिकार हमारा ही है । कुछ देशभक्त अपने सीने पर गोली खाते हैं तो कुछ गिरगिटिए नेतागण रोज अपने बच्चों की सैकड़ों झूठी कसमें खाते हैं । कुछ तो ऐसे जल्लाद भी हैं जो इंसानों को जिंदा ही निगल जाते हैं । कुछ तानाशाह लोग लोकतंत्र को खा जाते हैं तो कुछ अराजक लोग "सिस्टम" को खा जाते हैं । ऐसे लोग जो चीज खाने की है उसे नहीं खाते बल्कि अखाद्य पदार्थों को खाते हैं । जब अंट शंट चीजें खायेंगे तो ई डी या सी बी आई का दर्द उठता है फिर ये लोग संविधान और लोकतंत्र खतरे में होने का रोना रोते हैं । बेचारे, कितने शरीफ लोग हैं ये । और एक वो तानाशाह है कि ऐसे लोगों को चैन से खाने भी नहीं देता है । बहुत नाइंसाफी है भैया । 

अदालत के बाहर चाय की थड़ियों, छोटे मोटे ढाबों, रेस्टोरेंट और पनवाड़ियों की दुकानों पर जमघट लग गया था । लंच टाइम पर रोज ही जमघट लगता है यहां पर । चाय और पान की दुकानों पर लोग "बतरस" के लिए ही तो आते हैं । चाय और पान तो बहाना है , कुछ इधर-उधर की सुन सुना कर चले जाना है । चाय तो ससुरी घर में ही मिल जायेगी । परन्तु "बतरस" का जो आनंद चाय और पान की थड़ी पर आता है वह दुनिया में 56 भोग मिलने पर भी नहीं आता । 

दीनू पंडित की चाय की एक छोटी सी थड़ी के आगे पचासों "मुड्डियां" पड़ी रहती हैं । अदालत के सारे कर्मचारी, वकील , मुल्जिम, गवाह और पुलिस वाले सब उसकी थड़ी पर चाय का आनंद लेने के लिए आते हैं । वैसे तो दीनू पंडित एक अनपढ आदमी है पर वह अदालती प्रक्रिया की पूरी जानकारी रखता है । सारे कानून उसकी थड़ी से ही तो निकलते हैं । जब भी किसी के घर में कोई छोटी मोटी समस्या हो जाती है , लोग उसकी सलाह के बिना कुछ भी नहीं करते हैं । अरे, जैसे नीम हकीम डॉक्टर बन जाता है ऐसे ही हर चाय पान वाला भी "वकील" बन जाता है । 

अनुपमा का केस बहुत चर्चित हो गया था । अनुपमा थी ही इतनी खूबसूरत कि उसे देखने के लिए अदालत में इतनी भीड़ इकठ्ठी हो रही थी । वैसे भी कोई सुन्दर सी लड़की हो तो उसे देखने के लिए ही लोग चाय की थड़ियों पर घंटों बैठे रहते हैं और उसके "दीदार" को तरसते रहते हैं । जब वह लड़की दीनू पंडित की थड़ी के सामने से गुजरती है तो कोई शोहदा सीटी मारकर तो कोई बिना बात जोर से हंसकर उस लड़की का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है । लड़कियां भी इन सड़क छाप मजनुओं की आदतें जान लेती हैं । उन्हें पता होता है कि इनकी ख्वाहिश क्या है ? इन्हें "दर्शन" करने की बीमारी है इसलिए इन्हें दर्शन देना ही होगा । इसलिए वे बस एक बार मुस्कुरा कर उन्हें देख भर लेती हैं । आधे लोगों का पेट तो इसी से भर जाता है । रही बात आधे लोगों की तो वे उसके पीछे पीछे चल देते हैं । उन्हें दर्शन के अलावा और भी कुछ चाहिए । इसके लिए कोई चुपचाप उसके पीछे चलता रहता है तो कोई पीछे से "टोन्टबाजी" करता चलता है । टोन्टबाजी करने वाले कुछ लोग "सैण्डलों" का प्रसाद पाकर धन्य हो जाते हैं और उनकी यात्रा का अंत वहीं पर हो जाता है । पर कुछ दुस्साहसी लोग तब तक नहीं मानते जब तक कि दो चार लाठी उनकी पीठ का नाप न ले ले । कुछ लोग अपनी धुन के इतने पक्के होते हैं कि वे गाली और गोली की भी परवाह नहीं करते हैं । ऐसे परमवीर लोग ऐसी सुन्दरियों के सपनों के राजा बन जाते हैं । 

अनुपमा जैसी सुन्दर स्त्री का केस अदालत में चल रहा हो और लोग दीनू पंडित की थड़ी पर बैठकर उस पर "तप्सरा" नहीं करें, यह संभव नहीं है । लोग मजे ले लेकर आपस में बातें कर रहे थे । 
एक आदमी बोला "अबे, क्या तूने वो "एल्बम" देखा था" ? 
दूसरा आदमी बड़ी मायूसी से बोला "अपने ऐसे नसीब कहां हैं यार ? काश ! हम भी एक बार उस "दिव्य" एल्बम के दर्शन कर पाते ? तू ने देखा था क्या" ? 

पहला व्यक्ति इस बात से इतना आनंदित होता है कि जैसे वह उससे कह रहा हो कि "बेटा मैं तो जन्नत की सैर कर आया और तू अभी तक नर्क में ही पड़ा है" ? उसकी आंखें जन्नत के उस आनंद से इतनी बोझिल हो रही हैं कि वे खुलने का नाम भी नहीं लेती हैं । उसके चेहरे पर पूर्ण तृप्ति के भाव ऐसे विराजमान हो रहे हैं जैसे गणेश जी महाराज मोदकों से भरा एक पूरा थाल खाकर पूर्ण तृप्त हो रहे हों । 

पहले व्यक्ति की आनंद में डूबी आंखों को देखकर दूसरे व्यक्ति को जलन होने लगी । वह मन ही मन कहने लगा "देख, साला कैसा मगन हो रहा है उस एल्बम को देखकर ? ऐसा लग रहा है कि साले ने जैसे "सब कुछ" देख लिया हो । और देखेगा क्यों नहीं ? आखिर अदालत के जमादार का रिश्तेदार जो है । उसने दिखा दिया होगा साले को" । ईर्ष्या के मारे उसके अंदर से गालियों का सैलाब निकल रहा था मगर चेहरे पर भाव बड़े आत्मीयता के ओढ रखे थे उसने । उसे तो अपना काम निकलवाना था, वह एल्बम उसे भी देखना था इसलिए उसकी मिन्नतें करते हुए वह बोला 
"तू ने तो पूरा एल्बम देख लिया होगा ? क्यों है ना ? तभी तो तू रस में इस कदर चूर हो रिया है । साले, तेरी तो पांचों उंगली घी में है" । उसका जी तो कर रहा था कि वह उसे कच्चा चबा जाए लेकिन अभी तो उसे एल्बम देखना था । हां, एल्बम देखकर कच्चा चबाने के बारे में सोचा जा सकता है" 

पहला आदमी इतना ढीठ था कि उसने उसके प्रश्न का तो जवाब ही नहीं दिया कि उसने वह एल्बम देखा है या नहीं ? पर शेखी बघारते हुए बोला 
"हमारे तो घर पर ही आ जाती हैं ऐसी चीजें" । गर्व के कारण उसके चेहरे से रस टपक रहा था । 

उसके इस जवाब से दूसरे आदमी का माथा भन्ना गया । "हमारे तो नसीब में साले उस एल्बम की एक झलक तक नहीं है और इस साले के घर पर ही आ जाते हैं ऐसे एल्बम ? न जाने कहां से मुकद्दर लिखवा कर लाते हैं ऐसे लोग" ? वह पहले आदमी के कान के पास मुंह ले जाकर फुसफुसाते हुए बोला 
"यार , एक बात बता । हमारे घर भी आ सकता है क्या वह एल्बम ? ऐसा यदि हो जाये तो कसम से जिंदगी बन जाये । बस, एक बार दिखा दे यार । मैं तेरा यह अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा" चिरौरी करते हुए बोला वह । 

पहला आदमी बहुत पहुंचा हुआ था । वह इतनी आसानी से पकड़ में आने वाला थोड़ी ना था । वह उसकी तरफ देखकर ऐसे हंसा जैसे कह रहा हो "ये मुंह और मसूर की दाल ? साले, औकात देखी है अपनी" ? जैसे वह तो भारतवर्ष का सम्राट हो ? ऐसे आदमी बोलते कम हैं और चिढाते ज्यादा हैं । कम बोलना ही सबसे बड़ा हथियार होता है ऐसे लोगों का । वह उसकी ओर देखकर हंसता ही रहा पर बोला कुछ नहीं । 

उसकी इस रावणी हंसी से दूसरा आदमी चिढ गया पर दांत पीस कर ही रह गया था वह । उसे तो वह एल्बम हर हाल में देखना था । इसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार था ।  इसलिए वह आदमी पहले आदमी के पास और नजदीक खिसक कर बैठ गया । वह कहने लगा "अदालत के जमादार साहब तो आपके फूफा के जंवाई के मौसा के भतीजे के साढू के जीजा के मामा हैं ना ? मैं सब जानता हूं । थोड़ी बहुत मेरी भी पहुंच है पर तेरे बराबर नहीं है । तू उनसे थोड़ी सी हमारी भी सिफारिश कर दे न यार । एल्बम के माध्यम से हमें भी जन्नत के कुछ नजारें देखने को मिल जायेंगे । इसके लिए जो तू कहेगा, वह सब करूंगा मैं । बस, एक बार वह एल्बम कैसे भी करके दिखला दे" ? 

पहला आदमी बहुत मक्कार था । मछली की तरह फिसलने में उस्ताद था वह । कहने लगा "तुझे तो मेरे सारे रिश्ते पता हैं यार ! तू तो बहुत ऊंची चीज है । बता, कहां से पता चला इतनी गोपनीय बात का" ? 
पहले आदमी के मुंह से फूटे इन उद्गारों से दूसरा आदमी आनंद के सागर में समा गया । वह मन ही मन कहने लगा "बच्चू, हम भी अंदर की खबर रखते हैं । हम भी किसी से कम नहीं हैं , समझे" ? वह पहले आदमी से कहने लगा "और तू ने वो कपड़े भी देखे हैं क्या ? वही पिंक और ब्लैक कलर वाले ? अगर देखे हैं तो तुझसे ज्यादा भाग्यवान और कोई नहीं है जगत में । तेरे तो दोनों हाथों में लड्डू हैं साले । थोड़ा सा हमें भी चखा दे ना उन लड्डुओंका स्वाद" ? 

इस बीच उन दोनों ने दो दो बार चाय पी ली थी । चाय के साथ ब्रेड पकोड़ा भी खा लिया था । भूख लगने लग गई थी ना दोनों को ! इतने गरमागरम टॉपिक पर बात होगी तो भूख लगेगी ही । जहां तक पैसे देने की बात है तो जाहिर है कि पैसे दूसरे आदमी ने ही दिये होंगे दोनों के । आखिर "बेशकीमती चीजों" को देखने के लिए इतनी सी कीमत देने में किसी को हर्ज भी नहीं होता है । उसके बाद वे दोनों  छज्जू पनवाड़ी के पास पान खाने चले गए । 

छज्जू पनवाड़ी के यहां तो और भी बड़ा मजमा लग रहा था । लोग शर्तें लगा रहे थे कि कातिल कौन है ? कल तक तो लोग सक्षम को कातिल बता रहे थे । उस पर "सट्टा" लगा रहे थे । सट्टा बाजार में सक्षम की रेट सबसे कम थी । केवल एक पैसा रेट चल रही थी उसकी । यानि जो सक्षम पर पैसा लगायेगा और यदि सक्षम ही कातिल सिद्ध हुआ तो पैसा लगाने वाले को एक रुपए पर एक पैसा एक्सट्रा मिलेगा । अक्षत की रेट पचास पैसा और अनुपमा की रेट एक रुपया चल रही थी । आज हीरेन की बहस के बाद सट्टा बाजार पूरी तरह हिल गया था । आज इन तीनों पर कोई भी पैसा लगाने को तैयार नहीं था । लोग कयास लगाने में लगे रहे पर किसी को भी विश्वास नहीं था कि जो वह कह रहा है, वह सही होगा ही । इसलिए सब अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार गप्प हांक रहे थे । इतने में पता चला कि लंच खत्म हो गया है । सब लोग अदालत में अपनी अपनी जगह आकर बैठ गये । 

श्री हरि 
22.6.2023 

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8 Comments

Gunjan Kamal

24-Jun-2023 12:07 AM

👏👌

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Hari Shanker Goyal "Hari"

24-Jun-2023 10:01 AM

🙏🙏

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वानी

23-Jun-2023 07:32 PM

Nice

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Hari Shanker Goyal "Hari"

23-Jun-2023 08:53 PM

🙏🙏

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Punam verma

23-Jun-2023 09:36 AM

Nice part

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Hari Shanker Goyal "Hari"

23-Jun-2023 01:59 PM

🙏🙏

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